बॉलीवुड में सूफी गानों का इतिहास | Sufi Songs History In Bollywood

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संगीत हर इंसान के जीवन में ज़रूरी है संगीत मनुष्य को प्रफुल्लित कर देता है. संगीत के कई प्रकार होते है जैसे की पॉप, रॉक, क़व्वाली, ग़ज़ल और सूफी. क़व्वाली, ग़ज़ल और सूफी में उर्दू के कई भारी-भरकम शब्द सुनने को मिलते है. जैसे की रूहानियत, मगरुर, तस्लीम और वफ़ा. सूफी संगीत कई वर्षों से हिंदी सिनेमा का हिस्सा रहा है. सूफी संगीत को समझने के लिए आपको केवल उन शब्दों को जानना होता है जो कि थोड़े कठिन होते है. सिर्फ कुछ ही शब्द सूफी में उर्दू के होते है जिन्हें जानने के बाद सूफी संगीत और भी सुहावना लगता है.

जब आप बुलेया, कुन फाया कुन, कबीरा, अर्जियां, ख्वाजा मेरे ख्वाजा, तू जाने ना, मौला मेरे लेले मेरी जान और पिया हाजी अली जैसे गाने सुनते है तो इनमे आपको सूफी का करिश्मा अलग ही झलकता हुआ दिखाई देता है. सूफी गानों ने संगीत की परिभाषा ही बदल के रख दी है.

पिछले कुछ सालों में सूफी गानों की लोकप्रियता में काफी वृद्धि हुई है. आज के युवाओं में भी सूफी गानों के लिए दीवानगी बनी हुई है. आज के समय के मशहूर और काबिल गायक आतिफ असलम और अरिजीत सिंह जो सूफी गाने गाते है उनके तो क्या कहने है, कुछ ही दिनों पहले आतिफ असलम ने नुसरत फ़तेह अली खान के सूफी गीत “सोचता हूँ के वो कितने मासूम थे” का रीमेक बनाया है, उस सूफी गीत का नाम है “देखते देखते” है फिल्म “बत्ती गुल मीटर चालू” के इस गीत को युवाओं के बीच काफी लोकप्रियता मिली है.

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सूफी संगीत कई दशकों से बॉलीवुड का हिस्सा बन चूका है. सूफी संगीत क़व्वाली के रूप में भी कई बार लोगों के सामने आ चूका है. 80 के दशक के आस पास की फिल्मों में हर डायरेक्टर एक बेहतरीन क़व्वाली चाहता था. गायिका रेखा भरद्वाज कहती है कि उस समय क़व्वाली एक पसंदीदा रूप हुआ करता था. पुराने समय के लोग रूमी और हाफिज के दीवाने होते थे. और फिर कही से सूफी की इजात हुई सूफी गानों को लोगों के दिलों की धड़कन बनाने के लिए और सूफी गानों की लोकप्रियता बढाने में सबसे मुख्य हाथ उस्ताद नुसरत फ़तेह अली खान का था. नुसरत फ़तेह अली खान साहब ने अपने अंदाज़ से क़व्वाली को सूफी में मिक्स कर के लोगों के सामने पेश किया वे जब सूफी गाने गाते थे तो समां बंध सा जाता था. उन्हें सुनने आये दर्शक उनके मुरीद हो जाते थे.

तब से लेकर अब तक सूफी संगीत में कई बदलाव आये है. सूफी संगीत में कई प्रकार के संगीत को मिला दिया गया है. सूफी के जानकार का कहना है कि इस शैली की सुंदरता सभी प्रकार के संगीत को अपने अन्दर सम्मिलित करने की क्षमता है. कई वर्षों से सूफी संगीत में उपकरणों और प्रयोगों के साथ, यह कव्वाली, मजाजी, हाकीकी, ट्रान्स संगीत के साथ मिश्रित होती गई है.

इरशाद कामिल का गीत “तुम ही हो बंधू सखा तुम्ही” अपनी पॉप-रॉक शैली के बावजूद भी सूफी का आनंद देता है. समय के साथ साथ सूफी संगीत में बदलाव आते गए है. राहत फ़तेह अली खान को आज के बॉलीवुड का सबसे बेहतरीन सूफी गायक माना जाता है और राहत ने अपने बॉलीवुड डेब्यू भी सूफी गाने “लागी तुम से मन की लगन” के साथ ही किया था.

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